Criminal Justice 4 Review: सुर्वीन चावला ने लूटी महफिल, माधव मिश्रा की अदालत इस बार खाली रही

Hotstar Specials की बहुचर्चित क्राइम थ्रिलर और कोर्टरूम ड्रामा सीरीज़ ‘Criminal Justice’ का चौथा सीजन—‘Criminal Justice: A Family Matter’—अब स्ट्रीमिंग पर है। जहां एक बार फिर पंकज त्रिपाठी अपने लोकप्रिय किरदार माधव मिश्रा के साथ लौटे हैं, वहीं इस बार सुर्वीन चावला अपने दमदार अभिनय से पूरी कहानी पर भारी पड़ती नज़र आईं।

कहानी की झलक:

Criminal Justice चौथा सीज़न एक जटिल पारिवारिक हत्याकांड पर केंद्रित है। कहानी शुरू होती है एक रहस्यमयी मर्डर केस से, जिसमें डॉक्टर राज नागपाल (मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब) पर शक जाता है, जिनकी प्रेमिका रोशनी सलूजा (आशा नेगी)—जो एक नर्स और उनकी  बेटी की विशेष देखभाल करती थी—मृत पाई जाती हैं।

इस मर्डर की जानकारी पुलिस को राज की पत्नी अंजू (सुर्वीन चावला) देती हैं, जो उनसे अलग रह रही होती हैं। घटनास्थल पर राज की बेटी इरा (खुशी भारद्वाज), जिसे Asperger’s Syndrome है, और उनकी मां गुरमीत (सोहेला कपूर) भी मौजूद होती हैं।

अब सवाल उठता है—कातिल कौन है? क्या वो डॉक्टर जिसने सच्चा प्यार किया या वो पत्नी जो हर हाल में शांत दिखती है? या फिर कोई तीसरा, जो खामोशी से फ्लैट में घुसा और वार कर गया?

Criminal Justice

अभिनय और किरदार:

पंकज त्रिपाठी इस बार भी माधव मिश्रा के रूप में अपने सहज अभिनय से प्रभावित करते हैं। उनका कहना है, “माधव मिश्रा से मेरा आधार लिंक हो गया है”, और यह बात सच भी लगती है। लेकिन इस बार उनका किरदार उतना धारदार नहीं लगा जितना पहले सीज़नों में था। दर्शकों को वो तीखी कोर्टरूम बहसें और धारदार परतों वाला ड्रामा थोड़ा कम मिला।

सुर्वीन चावला, जो अंजू नागपाल की भूमिका में हैं, इस सीजन की सबसे मजबूत कड़ी बनकर उभरती हैं। एक मां की चिंता, अपराधबोध और अंदरूनी टूटन को उन्होंने बेहद संजीदगी से निभाया है।

मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब जैसे सक्षम अभिनेता इस बार कुछ खास नहीं कर पाए। उनका किरदार और प्रदर्शन दोनों ही फीके रहे।

निर्देशन और प्रस्तुति:

रोहन सिप्पी के निर्देशन में बनी यह सीरीज़ एक बार फिर क्राइम, कोर्टरूम और फैमिली ड्रामा का मिश्रण पेश करती है। लेकिन पिछली तीन सीज़नों की तुलना में इस बार कहानी उतनी दमदार नहीं है।

Applause Entertainment और BBC Studios India के बैनर तले बनी इस सीरीज़ को JioCinema पर स्ट्रीम किया जा रहा  है।

Criminal Justice

जनता और आलोचकों की राय:

  • ऑडियंस रिव्यू: IMDb पर फिलहाल Criminal Justice 4 को 6.8/10 की रेटिंग मिली है। सोशल मीडिया पर मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं—कुछ दर्शकों को कहानी धीमी लगी, वहीं कुछ ने सुर्वीन के अभिनय की खूब तारीफ की।

  • आलोचकों की प्रतिक्रिया: द हिंदू, NDTV और Scroll.in जैसे प्लेटफॉर्म्स ने सीज़न की धीमी गति, अधूरी इमोशनल डेप्थ, और कमज़ोर क्लाइमैक्स की ओर इशारा किया। हालांकि, पंकज त्रिपाठी की नैचुरल अदाकारी और सुर्वीन की ईमोशनल गहराई को सराहा गया।

बहस में धार की कमी:

पिछले सीज़नों में माधव मिश्रा की अदालत में ज़बरदस्त जिरह, तर्क और नैतिक द्वंद्व होते थे। लेकिन इस बार उनकी बहसें बहुत सतही और जल्दी निपटाई गईं।

उदाहरण: पहले के सीज़नों में माधव एक-एक गवाह को तोड़ते थे, लेकिन इस बार उनकी दलीलें बहुत “generic” और जल्दी खत्म हो जाती हैं।

कानूनी गहराई की अनुपस्थिति:

कोर्टरूम ड्रामा का असली मज़ा तब आता है जब कानूनी पेचिदगियों को सरल लेकिन प्रभावी ढंग से दिखाया जाए। इस बार न कोई दिलचस्प legal twist था, न ही कोई ऐसा तर्क जिससे दर्शक सोच में पड़ जाएं।

पहले: सीज़न 1 में juvenile justice का मुद्दा, सीज़न 3 में mental health और media trial को कोर्ट में बखूबी उभारा गया था।
इस बार: Asperger syndrome और parental negligence जैसे गंभीर मुद्दे कोर्ट में बस touch and go रहे।

विपक्षी वकील का कमजोर अदाकारी :

पिछली बार की तरह इस बार भी माधव के सामने कोई करिश्माई या धाकड़ वकील नहीं था। जिस corporate law firm की बात बार-बार होती है, वो भी महज़ बैकग्राउंड में रह जाती है।

कोर्टरूम तब मज़ेदार लगता है जब दोनों पक्षों में टक्कर हो — यहां माधव मिश्रा लगभग बिना चुनौती के खड़े दिखते हैं।

Criminal Justice

माधव मिश्रा का ‘Desi Charm’ दोहराव का शिकार:

हालांकि पंकज त्रिपाठी का अभिनय शानदार है, लेकिन अब उनका ‘मैं तो ठेठ वकील हूं’ वाला अंदाज़ थोड़ा दोहराव महसूस कराने लगा है।

इस बार अदालत में उनका किरदार कम improvisation करता है, और courtroom scenes में उनका usual witty punch कम दिखता है।

Criminal Justice 4 की अदालत इस बार इसलिए खाली लगी क्योंकि:

  • केस उतना चैलेंजिंग नहीं था।

  • कानूनी बहसें जल्दबाज़ी में निपटाई गईं।

  • माधव मिश्रा के सामने कोई दमदार विरोध नहीं था।

  • और अदालत की नाटकीयता, जो इस शो की पहचान रही है, इस बार फीकी पड़ी।

Leave a Comment