“Jugnuma Review: Manoj Bajpayee की शानदार अदाकारी, Deepak Dobriyal-Tillotama Shome के दमदार रोल, जादुई कहानी सबको नहीं भाएगी”

फिल्मों को पसंद किए जाने के लिए हमेशा बड़े सितारे होना जरूरी नहीं होता। कभी-कभी सिर्फ बेहतरीन कलाकार और दमदार कहानी ही काफी होती है। मनोज बाजपेयी की नई फिल्म ‘Jugnuma’ (जुगनुमा) इसका सबसे बड़ा सबूत है। नेटफ्लिक्स की ‘इंस्पेक्टर जेंडे’ के बाद लगातार दूसरी शानदार परफॉर्मेंस देकर मनोज ने साबित कर दिया है कि वह हमारे समय के सबसे शानदार एक्टर्स में से एक हैं।

🎬 Jugnuma की टीम

  • निर्देशक: राम रेड्डी

  • कलाकार: मनोज बाजपेयी, दीपक डोबरियाल, प्रियंका बोस, तिलोत्तमा शोमे, हिरल सिद्धू, अवान पूकोट

📖 कहानी क्या है?

Jugnuma की कहानी 1989 में सेट है। देव (मनोज बाजपेयी) हिमाचल में एक बड़े सेब के बागान के मालिक हैं। उनकी जिंदगी बाहर से परफेक्ट लगती है, लेकिन सब बदल जाता है जब उनके बागान में रहस्यमयी आग लगनी शुरू हो जाती है।

पहले एक पेड़ जलता है, फिर एक लाइन, फिर पूरा ब्लॉक और धीरे-धीरे पूरा बागान राख में बदल जाता है। पुलिस, मजदूर, यहां तक कि खुद देव – कोई भी इसका कारण नहीं ढूंढ पाता। गांववालों के बीच तरह-तरह के सवाल उठते हैं:

  • क्या बाहर से आए घुमंतू लोग इसके पीछे हैं?

  • क्या गांव वाले देव की कीटनाशक नीतियों से नाराज़ हैं?

  • या फिर ये सब किसी अलौकिक ताकत का खेल है?

फिल्म आपको कोई सीधा जवाब नहीं देती। बल्कि यह रहस्य को धुएं की तरह हवा में तैरता छोड़ देती है।

⭐ एक्टिंग का जादू

मनोज बाजपेयी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह क्यों अलग हैं। देव का किरदार उन्होंने बेहद सहज और बिना ओवरड्रामा किए निभाया है। उनका संघर्ष, बेचैनी और निराशा देखने लायक है।

दीपक डोबरियाल मोहन् बने हैं, जो देव का मैनेजर और सबसे भरोसेमंद साथी है। उनका रोल रियल और ग्राउंडेड लगता है। दोनों की जोड़ी फिल्म की रीढ़ है।

महिला किरदारों की बात करें तो प्रियंका बोस की गूंजती आवाज कहानी में एक अनोखा तनाव जोड़ती है। वहीं तिलोत्तमा शोमे रंग-बिरंगी साड़ियों में बाकी के ग्रे माहौल के बीच ताजगी लेकर आती हैं। उनकी मौजूदगी फिल्म में हल्कापन और गर्माहट जोड़ती है।

🎭 फिल्म की खासियत

‘Jugnuma’ की सबसे बड़ी ताकत इसका कहानी कहने का तरीका है। निर्देशक राम रेड्डी ने इसे किसी सपने की तरह बुना है। इसमें मैजिक रियलिज्म है, रूपक हैं, और लोककथाओं जैसा रहस्य है।

फिल्म कई अहम मुद्दों को छूती है –

  • जाति और वर्ग विभाजन

  • इंसान बनाम प्रकृति की लड़ाई

  • और लोककथाओं का असर हमारे रोज़मर्रा के जीवन पर

ये फिल्म सीधे-सीधे आपको कुछ नहीं बताती। यह परत दर परत खुलती है और दर्शकों से धैर्य की मांग करती है। अगर आप सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिए फिल्म देखते हैं तो यह शायद आपको बोर भी कर सकती है।

🎥 विजुअल्स और टेक्निक

Jugnuma का सिनेमैटोग्राफी शानदार है। खास बात यह है कि इसे फिल्म रील पर शूट किया गया है, जो आजकल बहुत कम होता है। 1980 के दशक की सेटिंग के लिए यह स्टाइल एकदम फिट बैठता है। ग्रेनी टेक्सचर फिल्म को लोककथा जैसा अहसास देता है।

कहानी में कई खूबसूरत सिनेमैटिक टच हैं – जैसे देव का अपने बनाए पंख लगाकर उड़ना, बच्चों का वीडियो कैमरा लेकर खेलना, और वही कैमरा बाद में रहस्य की झलक देना। ये सब फिल्म को और भी सोचने पर मजबूर करता है।

Jugnuma

⚖️ क्यों देखें, क्यों छोड़ें?

‘Jugnuma’ आसान फिल्म नहीं है। इसमें बड़े ट्विस्ट, मसाला या ड्रामे की तलाश करने वाले दर्शकों को शायद मज़ा न आए। लेकिन अगर आपको धीमी रफ्तार वाली, सोचने पर मजबूर करने वाली फिल्में पसंद हैं, तो यह जरूर आपको छू जाएगी।

फिल्म एक फेबल (लोककथा) की तरह है – जो सीधे जवाब नहीं देती, बल्कि सवाल छोड़ जाती है। जब आप थियेटर से बाहर निकलेंगे तो शायद उलझन में होंगे, लेकिन यही उलझन आपके साथ लंबे समय तक रहेगी।

🎯 हमारा फैसला

‘Jugnuma’  उन फिल्मों में से है जो हर किसी के लिए नहीं बनी हैं। लेकिन जो लोग सिनेमा को सिर्फ टाइमपास नहीं, बल्कि एक अनुभव मानते हैं, उनके लिए यह एक अनोखा सफर है।

रेटिंग: ⭐⭐⭐ (3/5)
जॉनर: ड्रामा
वर्डिक्ट: लोककथा जैसी धीमी लेकिन असरदार फिल्म, जो जादू और हकीकत के बीच का पुल बनाती है।

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