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Kannada में बात करने पर मना करने वाली SBI अधिकारी पर विवाद, CM सिद्धारमैया बोले – ‘स्थानीय भाषा का सम्मान ज़रूरी’

SBI अधिकारी द्वारा kannada  बोलने से इनकार, विवाद गहराया: बैंक ने मांगी माफी, विरोध तेज

बेंगलुरु: एक वायरल वीडियो में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की एक महिला अधिकारी को यह कहते हुए देखा गया, “मैं कभी कन्नड़ नहीं बोलूंगी,” जिससे कर्नाटक में भारी विवाद खड़ा हो गया है। स्थानीय लोगों और प्रो-कन्नड़ संगठनों ने इसे राज्य की भाषा और संस्कृति का अपमान बताया है।

वायरल वीडियो से उठा विवाद

वीडियो में बैंक कर्मचारी को एक ग्राहक द्वारा कन्नड़ में बात करने का अनुरोध करते देखा गया, जिस पर उन्होंने स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया और कहा, “This is India”। यह बयान सोशल मीडिया पर आग की तरह फैला, जहां लोगों ने राज्य की आधिकारिक भाषा का सम्मान न करने को लेकर नाराज़गी जताई।

SBI officer refusing to speak in Kannada,

SBI की सफाई और माफी

विवाद के बाद SBI मुख्यालय ने एक बयान जारी कर कहा कि बैंक सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान करता है और इस घटना की आंतरिक जांच की जाएगी। उन्होंने कहा, “हमें खेद है कि हमारे कर्मचारी का आचरण हमारे मूल्यों के अनुरूप नहीं था।”

प्रो-कन्नड़ समूहों का ऐलान: होगा विरोध प्रदर्शन

प्रो-कन्नड़ संगठन जैसे कि कर्नाटक रक्षणा वेदिके ने SBI कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है। उनका कहना है कि राज्य में काम करने वाले हर कर्मचारी को कन्नड़ भाषा का सम्मान करना चाहिए

विशेषज्ञों की राय

भाषा नीति विशेषज्ञों का कहना है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में कन्नड़ को मान्यता प्राप्त है और सरकारी व सार्वजनिक संस्थानों में स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता देना आवश्यक है, ताकि आम जनता को असुविधा न हो।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की प्रतिक्रिया

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी मामले में प्रतिक्रिया दी और कहा:

“सभी सार्वजनिक सेवाओं में स्थानीय भाषा का सम्मान अनिवार्य होना चाहिए। बैंक कर्मचारियों को यह समझना चाहिए कि वे राज्य के लोगों की सेवा कर रहे हैं।”

सूर्य नगर अनेकल तालुका में एसबीआई शाखा प्रबंधक का व्यवहार, जिसमें कन्नड़ और अंग्रेजी में बात करने से इनकार किया गया, नागरिकों के प्रति असम्मान प्रदर्शित करता है, अत्यंत निंदनीय है। हम एसबीआई द्वारा अधिकारी को स्थानांतरित करने के लिए त्वरित कार्रवाई की सराहना करते हैं। अब इस मामले को बंद कर दिया गया है।
हालांकि ऐसी घटना दोबारा नहीं होनी चाहिए। सभी बैंक कर्मचारियों को ग्राहकों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना चाहिए और स्थानीय भाषा में बात करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।
मैं भारत के वित्त मंत्री और वित्त सेवा विभाग से आग्रह करता हूं कि वे पूरे भारत में सभी बैंक कर्मचारियों को सांस्कृतिक और भाषा संवेदीकरण प्रशिक्षण अनिवार्य करें। स्थानीय भाषा का सम्मान करना स्थानीय लोगों का सम्मान करना है।

तेजस्वी सूर्या   की प्रतिक्रिया

एसबीआई के अधिकारियों द्वारा किया गया यह व्यवहार बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है
यदि आप कर्नाटक में ग्राहक इंटरफेस का काम कर रहे हैं, खासकर बैंकिंग क्षेत्र में।
ग्राहकों से उस भाषा में संवाद करना महत्वपूर्ण है जिसे ग्राहक जानते हैं

इस तरह से अड़ियल रवैया बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है।
मैंने बार-बार संसद के अंदर और बाहर बैंकिंग संचालन में स्थानीय कर्मचारियों या स्थानीय भाषा जानने वाले कर्मचारियों की अनिवार्य नियुक्ति का मुद्दा उठाया है। 

कुछ हफ़्ते पहले ही एक सार्वजनिक लेखा बैठक में मैंने डीएफएस सचिव के समक्ष यह मुद्दा उठाया था, जिन्होंने मुझे आश्वासन दिया था कि स्थानीय भाषा के ज्ञान की इस आवश्यकता को अनिवार्य बनाने वाले कार्यालय अधिसूचना का पालन करने के लिए कार्रवाई की जाएगी
ऐसा लगता है कि इसे ठीक से लागू नहीं किया गया है

संविधान की आठवीं अनुसूची में कन्नड़ को मान्यता प्राप्त है और सरकारी व सार्वजनिक संस्थानों में स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता देना आवश्यक है, ताकि आम जनता को असुविधा न हो।

भाषा को लेकर चल रहे विवादों और अतीत में हुए प्रमुख भाषाई संघर्षों की बातें 

कर्नाटक – कन्नड़ बनाम हिंदी / अंग्रेज़ी

  • मौजूदा मामला (2024-25): SBI की महिला अधिकारी का “कभी कन्नड़ नहीं बोलूंगी” बयान वायरल हुआ।

  • विरोध: प्रो-कन्नड़ संगठनों ने SBI मुख्यालय पर प्रदर्शन की घोषणा की।

  • पृष्ठभूमि: कर्नाटक में हिंदी थोपे जाने को लेकर समय-समय पर आंदोलन होते रहे हैं (Metro signage, Central Exams में भाषा को लेकर विवाद)।

महाराष्ट्र – मराठी बनाम हिंदी / गुजराती / अंग्रेज़ी

  • मौजूदा तनाव: मुंबई में बेस्ट (BEST) बस सेवा और स्कूलों में मराठी को अनिवार्य करने की माँग।

  • राजनीति: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने मराठी भाषा को लेकर कई बार उत्तर भारतीयों के खिलाफ बयान दिए हैं।

तमिलनाडु – तमिल बनाम हिंदी (हिंदी थोपने का विरोध)

  • इतिहास: 1965 में हिंदी विरोधी आंदोलन में भारी विरोध-प्रदर्शन और दंगे हुए थे।

  • आज: UPSC, रेलवे भर्ती और CBSE परीक्षा में हिंदी को अनिवार्य बनाने के प्रयासों का लगातार विरोध किया जाता है।

  • स्लोगन:  (तमिल ही मेरी जान है)

बंगाल – बांग्ला बनाम हिंदी / अंग्रेज़ी

  • विवाद: बंगाल में बांग्ला भाषा के प्रचार को लेकर सरकार सक्रिय रही है, लेकिन स्कूलों और बोर्डों में हिंदी और अंग्रेज़ी के बढ़ते प्रभाव को लेकर असंतोष है।

  • राजनीतिक बयान: ममता बनर्जी ने कई बार “बांग्ला का सम्मान” जरूरी बताया।

उत्तर भारत – हिंदी बनाम उर्दू / स्थानीय बोलियाँ

  • संवेदनशीलता: उत्तर प्रदेश और बिहार में उर्दू भाषा के नाम पर बोर्ड, पाठ्यक्रम, और नौकरियों में आरक्षण को लेकर विवाद होते रहे हैं।

  • बोलियों का संकट: भोजपुरी, मगही, ब्रज जैसी बोलियाँ संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं हैं, इसे लेकर आंदोलन चल रहे हैं।

उत्तर-पूर्व भारत – स्थानीय जनजातीय भाषाएं बनाम हिंदी/अंग्रेज़ी

  • चुनौती: कई जनजातीय भाषाएं विलुप्ति के कगार पर हैं, लेकिन स्कूलों में उन्हें पढ़ाया नहीं जाता।

  • मणिपुर, नागालैंड में भाषा और स्क्रिप्ट (लिपि) को लेकर कई बार प्रदर्शन हुए हैं।

केंद्र सरकार बनाम राज्य – राजभाषा नीति विवाद

  • नियम: भारत में हिंदी और अंग्रेज़ी दो आधिकारिक भाषाएं हैं, लेकिन गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी को थोपे जाने का विरोध होता है।

  • 2022 में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बयान (“हिंदी को एकजुट भाषा बनाएं”) पर दक्षिण भारत में विरोध हुआ।

सोशल मीडिया और ऑफिस विवाद – भाषा की पहचान

  •  कई कंपनियों, बैंकों, और कस्टमर सर्विस में स्थानीय भाषा में सेवा न देने पर लोग सोशल मीडिया पर शिकायत कर रहे हैं।

  • Bengaluru, Hyderabad जैसे टेक-हब शहरों में भाषा को लेकर ऑफिस के अंदर भी बहस बढ़ रही है।

जब तक हर भाषा और बोली को बराबरी का सम्मान नहीं मिलेगा, ऐसे विवाद बार-बार उभरते रहेंगे।
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